Rheumatic फीवर:  बच्‍चों हो होने वाला यह बुखार है बेहद खतरनाक

Rheumatic फीवर:  बच्‍चों हो होने वाला यह बुखार है बेहद खतरनाक

सेहतराग टीम

रुमेटिक फीवर क्या है?

रुमेटिक फीवर के लिए बीटा हिमोलिटिक स्ट्रेप्टोकोकस नामक बैक्टीरिया को जि़म्मेदार माना जाता है। शुरुआती दौर में इसकी वजह से होने वाले संक्रमण को स्कारलेट फीवर कहा जाता है। 5 से 15 वर्ष के बच्चे इसका शिकार अधिक होते हैं। चार वर्ष की उम्र से पहले और चालीस की उम्र के बाद इसके होने की संभावना कम हो जाती है।

क्या है वजह?

जब सही समय पर इसका उपचार नहीं किया जाता तो रुमैटिक फीवर होने की आशंका बढ़ जाती है। इसकी वजह से शरीर का इम्यून सिस्टम असंतुलित हो जाता है और वह अपने स्वस्थ टिश्यूज़ को नष्ट करने लगता है। स्कूली बच्चों मेंरुमैटिक फीवर होने की एक प्रमुख वजह यह भी है कि उनका इम्यून सिस्टम पूरी तरह विकसित नहीं होता लेकिन बाहरी वातावरण से उनका संपर्क बहुत ज्य़ादा होता है। ऐसे में बैक्टीरिया उनके कमज़ोर शरीर पर हमला कर देता है और बच्चों का इम्यून सिस्टम उससे लडऩे में सक्षम नहीं होता। आनुवंशिक कारणों की वजह से बच्चों को यह समस्या हो सकती है। अगर घर में सफाई का ध्यान न रखा जाए, तब भी बच्चों को यह फीवर हो सकता है।

लक्षण-

  • जोड़ों में दर्द।
  • हृदय की मांसपेशियां प्रभावित होना।
  • जीभ व हाथ-पैर की अस्थिरिता।
  • बुखार।
  • गले का संक्रमण।
  • त्वचा पर चकत्ते, गांठ व निशान।
  • ध्यान केंद्रित न कर पाना।
  • हृदय का वाल्व प्रभावित होना इसके लक्षण हैं।

स्वास्थ्य पर असर-

रुमैटिक फीवर के कारण कई बार हार्ट के मसल्स और वॉल्व डैमेज हो जाते हैं, जिसे रुमैटिक हार्ट डिज़ीज़ कहा जाता है। दिल के  वॉल्व वन-वे डोर के रूप में कार्य करते हैं। इसी वजह से हृदय द्वारा पंप किए जाने वाले रक्त का प्रवाह एक ही दिशा में होता है। वॉल्व के क्षतिग्रस्त होने पर इनसे ब्लड लीक हो सकता है। यह ज़रूरी नहीं है कि ऐसे बुखार के कारण हृदय को हमेशा नुकसान पहुंचे लेकिन उपचार में देर होने पर हार्ट के डैमेज होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में हार्ट के आसपास पानी जमा होने लगता है। इससे उसके हार्ट के वॉल्व बहुत ढीले या टाइट हो जाते हैं। इन दोनों ही स्थितियों में वह सही ढंग से काम नहीं कर पाता। कुछ मामलों में रुमैटिक फीवर के लक्षण महीनों तक दिखाई देते हैं, जिससे बच्चों में रुमैटिक हार्ट डिज़ीज़ की आशंका बढ़ जाती है।

उपचार एवं बचाव-

  • बच्चे के गले में संक्रमण हो या दो-तीन तक 101 डिग्री से ज्यादा बुखार हो तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं।
  • संक्रमित बच्चे से दुसरे बच्चों को दूर रखें, नहीं तो उसे भी यह समस्या हो सकती है।
  • संक्रमण के पश्चात 9 दिनों के भीतर एंटिबायोटिक से ईलाज शूरू करने से रयूमैटिक बुखार के प्रभाव को रोका जा सकता है। रयूमैटिक बुखार के लक्षण का ईलाज नाॅन-स्टेरोईडल एण्टी-इनफ्लामेंटरी दवाईयों से किया जाता है।
  • कुछ हफ्तों या महीने भर में इस समस्या से निजात मिल जाती है लेकिन एक बात ध्यान रखें कि इसकी वजह से बच्चे के हार्ट को कोई नुकसान न पहुंचे।
  • अगर स्थिति ज्य़ादा गंभीर हो तो डॉक्टर स्टेरॉयड देने की भी सलाह देते हैं।
  • बच्चे के लिए एक टेंपरेचर चार्ट बनाएं। हर दो घंटे के बाद थर्मामीटर से उसके शरीर का तापमान जांच कर उसे चार्ट में दर्ज करें।
  • तीव्र हृदय प्रदाह में सम्पूर्ण आराम और कई बच्चों को कोर्टीजोन जैसी दवाईयाँ 2 से 3 हफ्ते देने की आवश्यकता होती है। बीमारी के लक्षण कम होने पर और खून की जांच सामान्य की तरफ दिखाई पड़ने पर दवाई की मात्रा धीरे-धीरे कम करके दवा बंद की जा सकती है।

 

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